उम्मीदो का सौदागर हूँ, सपनो में जीता हूँ।
जब दिल ना लगे तो थोड़ी सी पी लेता हूँ।।
Friday, November 2, 2007
Sunday, October 14, 2007
Reality !!!
भावनाओ से जुडी होती है रिश्तो की दुनिया,
मन को लुभाती है जीवन की स्मरतियाँ,
महशुस होने लगे जब आपको जिदंगी की सच्चाईयाँ,
तब बस रह जाते है आप ओर आपकी तन्हाईयाँ !!!
मन को लुभाती है जीवन की स्मरतियाँ,
महशुस होने लगे जब आपको जिदंगी की सच्चाईयाँ,
तब बस रह जाते है आप ओर आपकी तन्हाईयाँ !!!
Life .... Dr. Basir Badra
अनजान पैड़ो की छाव मे मोहब्बत है बहोत
जरा घर से निकल कर देखो, ये दुनिया खुब्सुरत है बहोत!!
जरा घर से निकल कर देखो, ये दुनिया खुब्सुरत है बहोत!!
नजर !!
नजर बचा कर नजरो से देखता हूँ
तुम बुरा न मानो इसलिए बडे ढर से देखता हूँ
जब भी देखता हूँ तुम नई सी लगती हो
इसलिए तुम्हे हर रोज फिर से देखता हूँ
आज तुम्हारे चेहरे की किताब से पढा है
तुम सोचती हो मैं तुम्हे बुरी नजर से देखता हूँ!!
तुम बुरा न मानो इसलिए बडे ढर से देखता हूँ
जब भी देखता हूँ तुम नई सी लगती हो
इसलिए तुम्हे हर रोज फिर से देखता हूँ
आज तुम्हारे चेहरे की किताब से पढा है
तुम सोचती हो मैं तुम्हे बुरी नजर से देखता हूँ!!
Saturday, September 15, 2007
पहचान ?? ......महीप
मिट्टी का है तन
मस्ती का है मन
छण भर का है ये जीवन
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
जीवन तो है बहती दरिया
इसमे उठता है सागरो सा तुफान
पता नही कब ये सैलाब थम जाएगा
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
कर जा कोई एसा काम
हर माँ कहे तु तो हे मेरी संतान
पता नही कब लग जाए तुझ पे पूर्ण विराम
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
मस्ती का है मन
छण भर का है ये जीवन
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
जीवन तो है बहती दरिया
इसमे उठता है सागरो सा तुफान
पता नही कब ये सैलाब थम जाएगा
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
कर जा कोई एसा काम
हर माँ कहे तु तो हे मेरी संतान
पता नही कब लग जाए तुझ पे पूर्ण विराम
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
कविता हूँ मै!! ....महीप
कभी करती हाश, कभी करती परिहाश
कभी करती रास, कभी लगती हूँ निराश
भावो के एक सागर से दूसरे मे गोते लगाती
कविता हूँ मै!
कवि की परिकल्पनाओ का सारांश हूँ मै
उनकी आकांशाओ का परिणाम हूँ मै
कवि दिल से निकलने वाली गरल को शब्द देती
कविता हूँ मै!
गरम मे पीपल की नरम छाँव हूँ मै
शरद मे श्वेत धूप चादर हूँ मै
हर मौसम मे मन को आनन्दित करती
कविता हूँ मै!
कभी करती रास, कभी लगती हूँ निराश
भावो के एक सागर से दूसरे मे गोते लगाती
कविता हूँ मै!
कवि की परिकल्पनाओ का सारांश हूँ मै
उनकी आकांशाओ का परिणाम हूँ मै
कवि दिल से निकलने वाली गरल को शब्द देती
कविता हूँ मै!
गरम मे पीपल की नरम छाँव हूँ मै
शरद मे श्वेत धूप चादर हूँ मै
हर मौसम मे मन को आनन्दित करती
कविता हूँ मै!
Subscribe to:
Posts (Atom)