Saturday, September 15, 2007

पहचान ?? ‍‍‍......महीप

मिट्टी का है तन
मस्ती का है मन
छण भर का है ये जीवन
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !
‍‍‍‍
जीवन तो है बहती दरिया
इसमे उठता है सागरो सा तुफान
पता नही कब ये सैलाब थम जाएगा
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !

कर जा कोई एसा काम
हर माँ कहे तु तो हे मेरी संतान
पता नही कब लग जाए तुझ पे पूर्ण विराम
इसलिए बना ले अपनी कोई पहचान !

कविता हूँ मै!! ....महीप

कभी करती हाश, कभी करती परिहाश
कभी करती रास, कभी लगती हूँ निराश
भावो के एक सागर से दूसरे मे गोते लगाती
कविता हूँ मै!

कवि की परिकल्पनाओ का सारांश हूँ मै
उनकी आकांशाओ का परिणाम हूँ मै
कवि दिल से निकलने वाली गरल को शब्द देती
कविता हूँ मै!

गरम मे पीपल की नरम छाँव हूँ मै
शरद मे श्वेत धूप चादर हूँ मै
हर मौसम मे मन को आनन्दित करती
कविता हूँ मै!